Thursday 30 May 2013

एक कहानी लिख



आज मेरी एक कहानी लिख
जिंदगी को शब्दों में लिखूं ,
ऐसी एक जिंदगानी लिख.
गुज़रते लम्हों को थाम लूँ हाथों से ,
लम्हों में ऐसी एक रवानी लिख .
कब तक अकेला फिरूं मैं राही,
न सब्र की इतनी जवानी लिख.
दर्द के टुकड़े बिखरे है यूँ ही,
दास्ताँ इनमे एक पुरानीं लिख.
कितने सावन सूखे बीते,
अब बूंद मेरी मस्तानी लिख.
इंतज़ार की घड़ियाँ सारी बीती,
आज रात मेरी सुहानी लिख,
लम्हों के इस दामन में तू
मेरी भी एक कहानी लिख.
  

Sunday 5 May 2013

अधूरे शब्द...

आज एक अधूरा ख़त मिला
अधूरे शब्द  लिए हुए
अलमारी के कोने में पडा था.
जज्बात तो अब भी उसमे पूरे थे पर अधूरे शब्द
उन जज्बातों को बयाँ न कर पाए.
जिन शब्दों की माला से तुम्हे
हर सांस में महसूस किया,
न जाने क्यों वो शब्द ही अधूरे रह गए.
आज सोचा फिर से इन शब्दों को पूरा करूँ,
एक अधूरे ख़त की हल्की पड़ी स्याही में
गाड़ी स्याही के रंग कुछ और भरूं,
लेकिन न कर सका,
शायद ये शब्द भी तुम्हारे साथ कहीं गुम हो गये.
पर इन अधूरे शब्दों में
तुम अब भी कहीं बाकी हो,
एक एहसास बनकर.


और आज फिर से मेरा अधूरा ख़त
अधूरा ही रह गया.
अलमारी के कोने में जगह तलाशता,
शायद इस इंतज़ार में तुम कभी 
इस ख़त को पूरा करने आओगी.