कोमल एड़ियां थी हमारी वो खुरदरी हो गयी,
देख उन्हें लगा जैसे आज वो बड़ी हो गयी,
किनारे से की शुरुआत वो कहीं खो गयी,
चलाई कश्तियाँ जो पानी में कभी वो अब गुम हो गयी.
देख आसमान को लगा पहचान बादलों की सो गयी,
जगमगाते जो तारे थे चमक उनकी भी कम हो गयी.
देख़ एड़ियों को लगा अब वो भी बड़ी हो गयी.
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अठखेलियाँ बन गई अब हमारी कहानी,
आज भी याद आता है बरसात का वो बरसता पानी,
अपने ही निशाँ नही मिलते गलियों में,
लगता हैं गुमशुदगी अब उनमें भी दर्ज हो गयी,
Sundar abhivyakti...
ReplyDeleteसुन्दर रचना !!
ReplyDeleteमें आपके ब्लॉग से जुड़ा हुआ हूँ
......अनुपम प्रस्तुति