Thursday, 25 April 2013

वक़्त की साजिश ....

वक़्त की साजिश है ये
नुमाइश में मैं खड़ा हूँ,
कोई नहीं अपना यहाँ पर 
ठोकर खाए पत्थर सा पड़ा हूँ.
मुझसे क्या पूछते हो कहानी इस सितम की 
जरा दुनिया के बाज़ार में सज कर तो देखो,
वक़्त के हाथों कितना जकड़ा मैं पड़ा हूँ.
गम-ए-तन्हाई का आलम इस कदर है छाया
हर मोड़ अब तो वीरां सफ़र है,
राही मैं सफर में रहबर की तलाश में खड़ा हूँ.

गुबार नहीं दर्द का इतना बड़ा के
दुनिया इसे देख पाए,
पग पग बंट रही ये धरती   
हिस्से की जमीन अपने बांटने मैं खड़ा हूँ.
वक़्त की साजिश है ये.........

5 comments:

  1. nice lines,वक़्त की साजिश है ये
    नुमाइश में मैं खड़ा हूँ,
    कोई नहीं अपना यहाँ पर
    ठोकर खाए पत्थर सा पड़ा हूँ.

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  2. यूं तो दुनिया की उमेश में हर कोई है ... ओर अपने अपने हिस्से का पत्थर सभी को खाना होता है ..
    दिल के जज्बातों को शब्द दिए हैं आपने ...

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  3. ''Wakt Ki Sajish'' badhiya likha h aapne...

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  4. मन के भावो> का सुन्दर चित्रण..शुभकामनाएं तनुज..

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  5. दिल के जज्बातों का सुन्दर चित्रण.......बहुत खूब लाजवाब रचना |

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