Monday 15 April 2013

जिंदगी बेहिसाब नहीं ......

                                                                                                                                                                           










जिंदगी बेहिसाब नहीं हर लम्हा हिसाब मांगती है,
आईने के सामने खड़ा हूँ तो आँखें जवाब मांगती है,
किस किस से दूर भागूँ मैं ये हवाएं शोर मचाती है,
यादों की भरी एक किताब हर कदम साथ भागती है.
मेरा अक्स भी नहीं खड़ा मेरे साथ  बेपरवाह मझे छोड़ गया,
भेदती है हर नज़र मुझे जब तीर प्रश्नों के वो दागती है.
रात के साये बालिश्तों से फैले है,
सवेरे को रोशनी का जरिया नज़र नहीं आता,
अब तो मेरी ज़मीन ही मुझसे घर का पता मेरे मांगती है.
रूह बंटी है यूँ हिस्सों में,खुदा का ये पैगाम है,
कभी मंजिल तो कभी दोज़ख की दुआ वो मांगती है.
जिंदगी बेहिसाब नहीं हर लम्हा......

1 comment: