Thursday 6 June 2013

यादों का पेड़ ....

सड़क किनारे पीपल का एक पेड़, 
हर शाख में याद लिए हुए,
मेरी ही यादों से सींचा हुआ,
मेरी हर गुफ्तगु से रमा वो पेड़.
थोडा झुका सा,
शायद  यादों के बोझ से थक चुका था.
अल सुबह पत्तो की बूंदों  में,
बचपन की सी एक तस्वीर दिखाई देती.
हवा की सरसराहट में गूंजती कुछ 
आवाजें सुनाई देती. 
करवट लेते अरमानो का वो 
सहारा था.
बहुत कुछ बदला सा था,फिर भी था अपना वो पेड़.
कितने ही दशक उसने गर्व से काटे थे,
हर मौसम से लगता उसके गहरे नाते थे.
पर वक़्त की मार से आखिर न बच सका,
कुछ खुदगर्जों का शिकार हुआ वो पेड़.
अब बस एक खाली जगह दिखाई देती है,
परछाई उस पेड़ की मेरे मन में अंगडाई लेती है.
हर सू फैली खुशबू में एक उसकी खुशबू खोजता हूँ,
शायद अपनी यादों में अब,मेरी यादों का पेड़ सोचता हूँ.
 

3 comments:

  1. 'Parchhaayi Us Ped Ki Mere Man me Angdayi Leti Hai'
    Bahut Khub,Kuchh Baaten...Kuchh Yaaden...Kuchh Chijhen,Bahut Dur Chali Jati Hai Pr Jahan Me Har Waqt Dastak Deti Hai.

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  2. इंसानी मज़े के कितने शिकार ... प्राकृति की अंमल देन है पेड़ और यादों से जुड़े रहते हैं ये पेड़ ...

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  3. ह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना

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