Friday 15 March 2013

बचपन की गलियाँ

                            

                                                           
बहुत सकडी थी वो सड़क, 
घर के गलयारे से वो दिखती थी, 
जाकर आगे चौराहे पर वो मुडती थी 
लेकिन थी बहुत सकडी वो सड़क. 

चहलकदमी खूब रहा करती थी उस पर 
रात को सन्नाटे में वो पसरती थी ,
चौकीदार के डंडे से भी पिटा करती थी,
लेकिन थी बहुत सकड़ी वो सड़क .

बरसातों में वो पानी का सहारा थी,
कागज़ की कश्तियों का हमारी एक छोटा सा किनारा थी ,
कभी बिजली की मार सहती तो कभी गड्डों में पसरा करती थी,
बदलते वक़्त का वो नज़ारा थी,
लेकिन थी बहुत सकड़ी  वो सड़क.

गुज़रे सालों बाद देख उस सड़क को लगा 
यादों की धुंध उस पर अब घूम रही थी,
सन्नाटे की परछाई भी धीरे से आगे  बढ  रही थी,
इतना कुछ बदल गया था समय हवा के झोंकों सा उड़ गया था,
पर एक चीज़ अब भी न बदली थी 
वही मेरी सकड़ी सी सड़क ....

3 comments:

  1. atii uttam...:-)

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  2. ''Kuchh chijhen rah jaati hai bas yaad me...'' Ab hum isse yaadon me jine ki aadat kahe ya fir aaj me jine ka sahaara...

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